
पाञ्चजन्य शंख का रहस्य:-
पाञ्चजन्य
शंख एक शक्तिशाली शंख है। समुद्र मंथन के दौरान
इसकी उत्पत्ति हुई थी। यह समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न था। भगवान
श्रीकृष्ण के गुरु के पुत्र पुनरदत्त को एक बार एक दैत्य उठा के ले गया। उसी गुरु पुत्र
को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। वहां उन्होंने देखा कि एक शंख में दैत्य सोया है।
उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें पता चला कि उनका गुरु
पुत्र तो यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए। और वहां पर यमदूतों ने उन्हें
अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते यमलोक हिलने लगा।
फिर यमराज
खुद वहां पर आकर श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को वापस कर दिया। भगवान
श्रीकृष्ण , बलराम और अपने गुरु पुत्र के साथ पुन: धरती पर लौट आए और उन्होंने गुरु
पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु को समक्ष प्रस्तुत कर दिया। गुरु ने पाञ्चजन्य
शंख को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि
यह तुम्हारे लिए ही है। तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने पाञ्चजन्य शंख का नाद कर पुराने
युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।
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